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प्राणी अर्थ जो जीवन हेतु श्वास प्रश्वास प्रक्रिया द्वारा प्राणवायु लेता छोड़ता है | चैतन्य युक्त प्राणी अर्थात प्राणी जिसमें ब्रह्मा स्वरूप आत्मा का वास हो जिससे वह भावों की अनुभूति करने में सक्षम हो | आत्मा जो के प्राणी में चैतन्य (conscious) है, वह ब्रह्मा का समूह ही है | जब तक प्राणी में प्राण रहते हैं अर्थ श्वास प्रश्वास की प्रक्रिया चलती है तब तक आत्मा प्राणी में स्थित रहती है | आधुनिक विज्ञान में इसे कैविटी कह सकते हैं जैसे लेजर के निर्माण में कैविटी के भीतर photon wavepacket अर्थ ब्रह्मा का समूह दो छोरों के मध्य दर्पणओं द्वारा कुछ समय तक बंधा रहता है उसी प्रकार ब्रह्मा का समूह आत्मा जीवित प्राणी के स्थूल मस्तिष्क में भृकुटी (between eyebrows on forehead) मध्य होता है | जीवन समाप्त होने पर जैसे कोशिकाओं से प्राण निकलते हैं यह कैविटी नष्ट होने पर आत्मा मुक्त हो जाता है | भौतिक जगत से इंद्रियों के सभी संबंध और उसके बाद उनका मस्तिष्क में प्रसंस्करण (processing in brain), मस्तिष्क में स्मृति अथवा रचनात्मक कोष से उत्पन्न सभी विचार , यह सब भी विद्युत चुंबकीय तरंग संकेत ही है अर्थ ब्रह्मा के रूप में आते हैं | जब यह संकेत आत्मा से मिलते हैं तब हम भावों की अनुभूति करते हैं जैसे किसी दृश्य का भिन्न रंग देखना, ध्वनि सुनना, कोई गंध ,रस ,स्पर्श और अन्य भाव जैसे पीड़ा, यह जब स्थूल शरीर और मस्तिष्क से प्रसंस्करीत संकेत (processed signal) जब आत्मा से मिलते हैं तब जिस प्रकार ब्रह्मा का अन्य ब्रह्मा के साथ संबंध होने पर दोनों में भावों की अनुभूति होती है उसी प्रकार प्राणी को भावों की अनुभूति होती है | संबंध के पश्चात प्रसंस्करीत संकेत मस्तिष्क में अन्य स्थान में जाते हैं जाते हैं जैसे स्मृति अथवा रचनात्मक कोष में और यहां उनसे अन्य विचार उत्पन्न हो सकते हैं | आत्मा संबंध के पूर्व और बाद एक समान ही रहता है भावों की अनुभूति  प्राणी संबंध के समय ही करता है जब एक ही स्थान पर दोनों ( संकेत और आत्मा) की विद्युत और चुंबकीय तरंगे होती हैं | इस प्रकार से आत्मा को हम इंद्रियों व मस्तिष्क के एक भाग और मस्तिष्क के अन्य भाग के मध्य सेतु के रूप में भी देख सकते हैं |

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स्थूल शरीर अर्थात इंद्रिय और मस्तिष्क मैं निरंतर प्रतिपल परिवर्तन होते रहते है | जिन भौतिक पदार्थों से वह निर्मित हैं उनमें ऊर्जा का आदान-प्रदान चलता रहता है जिसे भौतिक दृष्टि से देखा जाए तो सभी नाशवान विकारी अस्थिर हैं | किंतु आत्मा प्राणी के शरीर में इन सभी से निसंग है क्योंकि आत्मा भावों की अनुभूति कर क्षण में ही सामान्य हो जाता है और जिन संकेतों से उसका संबंध हुआ था वह संकेत भी अपने सामान्य रूप में संबंध के बाद मस्तिष्क के अन्य भागों में चले जाते हैं | इस हेतु आत्मा प्राणी के शरीर में अविकारी ,अविनाशी, प्राणी के जीवन रहते हुए उसमें स्थिर रहता है और मृत्यु पश्चात मुक्त हो जाता है | 

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