सरल सम्वाद SIMPLE DIALOG
पुरुषोत्तमयोग / Purushottamyog
15-01
वृक्षरुपी संसार का काल आदि से ऊर्ध्व स्थित ब्रह्मा मूल है | ब्रह्मा प्रकृति व विकारों के रूप में नीचे की ओर फैली शाखाएं हैं | विनश्वर होने के कारण यह अश्वत्थ है किंतु प्रवाह से नित्य रहने हेतु अव्यय भी है |
From the beginning of time, the formless electromagnetic wave energy is the root of the upside down tree-like world. Matter comprised of electromagnetic wave energy are the branches spreading downwards in the form of physical matter and vices. Being perishable, it is similar to physical world tree(matter being destroyed as broken branches) but it is also eternal as it is a cycle in perpetual motion(endless matter creation/destruction cycle).
15-02
वृक्ष की विविध योनिरूप शाखाएं नीचे और ऊपर फैली है, जो सत्व, रज तम गुणों से वृद्धि करती है, इंद्रियों विषयों की कोंपल फूटी हुई ,मनुष्यलोक में कर्मानुसार बांधने वाली राग द्वेष रूपी जड़े नीचे सांसारिक जाल की भांति फैली है |
Various branches of the tree spread below and above, which grow from the energy exchanges of sattva, rajas and tamas, the buds /branches arise more in the case of attachment towards sensory physical objects and these branches of attachment and several emotions that bind a being according to karma(actions/work) in the physical world are spread below like a worldly net.
15-03
अत्यंत दृढ़तापूर्वक फैली हुई जड़ों वाले वासना ,कर्मबंधन रूप जड़े इस अश्वत्थ वृक्ष को अनासक्ति रूपी दृढ़ शस्त्र से काटकर उस स्थान को ढूंढना चाहिए जहां से फिर लौटना नहीं पड़ता, यह संकल्प करना चाहिए सृष्टिक्रम की पुरातन प्रवृत्ति जिससे उत्पन्न हुई है, उस आदिपुरुष की शरण में है |
These perishable branches, existing in the form of attachments, bondage of karma(work), should be cut down with the powerful weapon of non-attachment and search for the place in the tree from where there is no return again, it should be resolved that origin of the universe,pure energy ,electromagnetic wave energy, is Adipurush and all beings,matter are in its refuge.
15-10
शरीर से उत्क्रमण त्याग करते हुए, शरीर में स्थित तथा प्रकृति के गुणों से युक्त होकर भोक्ता रूप में विषयों का उपभोग करते हुए जीव को मूर्ख अज्ञानी नहीं जानते, ज्ञान रूपी चक्षु वाले विद्वान ही उसका अनुभव करते हैं |
The soul is not known by the ignorant fools, but is experienced by the learned wise yogis, at the time of renouncing the body(during death).
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